तेरे बिन मैं अधुरी,
हर चाह अधुरी।
मेरा शृंगार अधुरा,
चेहरे की लाली तेरे बिन अधुरी है।
तेरे बिन जीवन अधुरा,
हर साँस अधुरी है।
तेरे बिन कुछ पाने की आस अधुरी,
होठो की हँसी अधुरी, अधूरे आखों के आंसू।
'चियु' तेरे बिन मैं अधुरी
मेरी जिंदगानी है अधुरी।
२८-११/2008
Thursday, December 25, 2008
Wednesday, October 22, 2008
"जीवन रूपी पानी"
मेरा जीवन पानी की तरह बहता चला।
पानी जिसका ना कोई रूप है और ना ही कोई आकार
जन्मलिया, कुछ बंधा रिश्तों से , कुछ उन्मुक्त बहता रहा।
बहता-बहता एक दिन जा टकराया प्यार से ,
प्यार की वादियाँ, चारों तरफ़ हरियाली, महकते हुए फूल, खुशिया ही खुशियाँ
मैं बहता रहा मस्ती से छलकते हुए।
फिर एक दिन प्यार बोला-
तुम्हे जाना होगा।
और बाँध दिया एक बाँध मेरे और उसके बीच।
पानी जिसका ना कोई रूप है और ना ही कोई आकार
जन्मलिया, कुछ बंधा रिश्तों से , कुछ उन्मुक्त बहता रहा।
बहता-बहता एक दिन जा टकराया प्यार से ,
प्यार की वादियाँ, चारों तरफ़ हरियाली, महकते हुए फूल, खुशिया ही खुशियाँ
मैं बहता रहा मस्ती से छलकते हुए।
फिर एक दिन प्यार बोला-
तुम्हे जाना होगा।
और बाँध दिया एक बाँध मेरे और उसके बीच।
मैं, मैं तो सरे रास्ते छोड़ बह चला था,
प्यार की वादियों में।
बिना राह, मैं बाँध के इस ओर बंधने लगा।
रिश्तों ने फिर आवाज़ दी॥
पर लौटू कैसे?
मैं तो बंध चुका हूँ।
रिश्तो ने नहर बने...
फिर मुझे वापस ले आए, उस दुनिया में , जो मेरी थी।
jaha मैंने जन्म लिया था॥
२२/१०/2008
Friday, October 17, 2008
"आस"
बढ चला हूँ एक अनजान राह पर,
फीर भी दिल को तेरी आस है बाकी ।
लम्हा-लम्हा घटती जा रही है दूरी,
फीर भी तेरे आने की आस है बाकी ।
दो कदम चलता हूँ और फीर पलट कर देखता हूँ,
इन ड़ब-ड़बaai आखों में, तुझे देख पाने की प्यास है बाकी ।
डगमगाने लगे है अब कदम......
टूटने लगी है साँसो की डोर.....
बंद होती इन आखों में फीर एक बार तुझे देख पाने की आस है बाकी ।
ना जाने कब टूट जाए ये जीवन-माल ,
क्या जाने पूरी हो ना हो,तुझे देख पाने की आस बाकी.
१७/१०/२००८
फीर भी दिल को तेरी आस है बाकी ।
लम्हा-लम्हा घटती जा रही है दूरी,
फीर भी तेरे आने की आस है बाकी ।
दो कदम चलता हूँ और फीर पलट कर देखता हूँ,
इन ड़ब-ड़बaai आखों में, तुझे देख पाने की प्यास है बाकी ।
डगमगाने लगे है अब कदम......
टूटने लगी है साँसो की डोर.....
बंद होती इन आखों में फीर एक बार तुझे देख पाने की आस है बाकी ।
ना जाने कब टूट जाए ये जीवन-माल ,
क्या जाने पूरी हो ना हो,तुझे देख पाने की आस बाकी.
१७/१०/२००८
Thursday, October 16, 2008
अहसास नही बाकी
अहसास नही अब कोई बाकी।
रोते - रोते हँस देता हूँ,
हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ।
हूँ क्या अब तो ये याद भी नही बाकी।
चला जा रहा हूँ,
अब तो मंजिल की तलाश भी नही बाकी।
ना खुशी हसाती है,
और ना गम ही रुलाता है।
और ना ही दर्द का अहसास,
तू जो नही है तो अहसास नही कोई बाकी॥
१५-१०-२००८
रोते - रोते हँस देता हूँ,
हँसते-हँसते रो पड़ता हूँ।
हूँ क्या अब तो ये याद भी नही बाकी।
चला जा रहा हूँ,
अब तो मंजिल की तलाश भी नही बाकी।
ना खुशी हसाती है,
और ना गम ही रुलाता है।
और ना ही दर्द का अहसास,
तू जो नही है तो अहसास नही कोई बाकी॥
१५-१०-२००८
Monday, October 6, 2008
"अंहकार"
पंडित रमाशंकर अपने शहर के बहुत मशहूर पंडित थे। पुरे शहर में सभी उनका सम्मान करते थे। सारा शहर उन्हें बहुत ही न्याय प्रिया और दयालु मानते थे। यूँ तो पंडित रमाशंकर बहुत दयालु थे, पर उन्हें अपने ब्राम्हण होने पर बड़ा ही घमद था। वे सोचते कि ब्राम्हण भगवन के सबसे प्रिया और करीब होता है। और इसी गर्व से चूर होकर वो अन्य जाति के लोगो से सीधे मुह बात तक ना करते थे।
यूँ तो पंडित रमाशंकर धन-धान्य से परिपूर्ण थे,पर उन्हें सिर्फ़ एक चीज़ कि चिंता हमेशा सताती रहती थी। कि उनके वंश का नाम आगे कैसे बढेगा। पंडित रमाशंकर को ६ लड़किया थी। पर उनकी लड़का पाने कि चाह पुरी नही हो पा रही थी।
उन्होंने अपनी कुंडली का कई बार अध्ययन कई बार कर चुके थे। और उसमे पुत्र का योग भी बराबर नज़र आता था। पुत्र जो उनके वंश का नाम आगे बढ़ाएगा और उनके जीवन कि साडी परेशानी,दुःख तकलीफ का अंत कर उनका नाम रोशन करेगा। इसी पुत्र कि चाह में एक-एक करके उनके घर ६ पुत्रियों का जनम हुआ। पर उनके पुत्र कि चाहत कम न हुई।
उसी शहर में एक क्रिश्चियन परिवार रहता था। मोरिस, उसकी पत्नी नैंसी और उसका पुत्र राहुल। मोरिस के घर की परिस्थी साधारण ही थी। कुल मिला कर उनका घर चल ही जाता था। पर नैंसी को लड़कियों से बहुत प्यार था। वो हमेशा सोचती की काश उसे कोई लड़की होती। नैंसी एक हॉस्पिटल में नर्स थी। उसके सामने कितनो की लड़किया होती, तो उसके दिल में हमेशा कसक होती थी , की भगवन उसे कब लड़की देगा।
कई बार उसके मन में आया की वो कोई लड़की को गोद ले ले। पर परिवार के डर से कोई निर्णय नही ले पा रही थी।
उधर पंडित रमाशंकर की पत्नी पुनः गर्भवती हुई। पंडित रमाशंकर ने ढएरो पूजा-पाठ कियते, ताकि इस बार उन्हें पुत्र रत्ना की ही प्राप्ति हो। आख़िर वो घड़ी आ ही गई, जिसका उन्हें इंतज़ार था।
पंडित रमाशंकर की पत्नी को हॉस्पिटल ले जाया गया। वही जहा नैंसी काम करती थी। पंडित की पत्नी ने फिर एक लड़की को जनम दिया। फिर लड़की को देख कर पंडित जी का चेहरा उतर गया। उनकी jyotish vidhya फ़ैल हो गई। उन्होंने लड़की को देखा, एकदम गुडिया की तरह सुंदर। लेकिन पंडित जी ने को अपनाने से मन कर दिया.नैंसी ने देखा पंडित जी लड़की को किसी भी कीमत पर अपनाने को तैयार नही है। तो उसने डॉक्टर से कहा , यदि पंडित जी को कोई आपत्ति न हो तो मैं लड़की को गोद लेना चाहती हूँ। यदि पंडित जी को krishchian परिवार से कोई आपत्ति न हो तो। पंडित जी ने कहा की मुझे इस लड़की से कोई मतलब नही है। किसी के पास भी रहे.बस किसी को ये पता न चल पाए की ये मेरी संतान है। और इस तरह नैंसी गुडिया को अपने घर ले आई। उस बच्ची के घर में जैसे खुशिया ही खुशिया आ गई। नैंसी ने बच्ची का नाम रखा "खुशी" । नैंसी के पति को बिज़नस में बहुत मुनाफा हुआ। इस तरह खुशी अपने नाम की तरह ही उनके परिवार में खुशिया ले कर आई। और नैंसी का पूरा घर खिशी से जगमगा उठा।
और पंडित जी लड़के की चाह में , घर में आई लक्ष्मी को भी ठुकरा दिया। और अपना नाम भी न दे सके।
यूँ तो पंडित रमाशंकर धन-धान्य से परिपूर्ण थे,पर उन्हें सिर्फ़ एक चीज़ कि चिंता हमेशा सताती रहती थी। कि उनके वंश का नाम आगे कैसे बढेगा। पंडित रमाशंकर को ६ लड़किया थी। पर उनकी लड़का पाने कि चाह पुरी नही हो पा रही थी।
उन्होंने अपनी कुंडली का कई बार अध्ययन कई बार कर चुके थे। और उसमे पुत्र का योग भी बराबर नज़र आता था। पुत्र जो उनके वंश का नाम आगे बढ़ाएगा और उनके जीवन कि साडी परेशानी,दुःख तकलीफ का अंत कर उनका नाम रोशन करेगा। इसी पुत्र कि चाह में एक-एक करके उनके घर ६ पुत्रियों का जनम हुआ। पर उनके पुत्र कि चाहत कम न हुई।
उसी शहर में एक क्रिश्चियन परिवार रहता था। मोरिस, उसकी पत्नी नैंसी और उसका पुत्र राहुल। मोरिस के घर की परिस्थी साधारण ही थी। कुल मिला कर उनका घर चल ही जाता था। पर नैंसी को लड़कियों से बहुत प्यार था। वो हमेशा सोचती की काश उसे कोई लड़की होती। नैंसी एक हॉस्पिटल में नर्स थी। उसके सामने कितनो की लड़किया होती, तो उसके दिल में हमेशा कसक होती थी , की भगवन उसे कब लड़की देगा।
कई बार उसके मन में आया की वो कोई लड़की को गोद ले ले। पर परिवार के डर से कोई निर्णय नही ले पा रही थी।
उधर पंडित रमाशंकर की पत्नी पुनः गर्भवती हुई। पंडित रमाशंकर ने ढएरो पूजा-पाठ कियते, ताकि इस बार उन्हें पुत्र रत्ना की ही प्राप्ति हो। आख़िर वो घड़ी आ ही गई, जिसका उन्हें इंतज़ार था।
पंडित रमाशंकर की पत्नी को हॉस्पिटल ले जाया गया। वही जहा नैंसी काम करती थी। पंडित की पत्नी ने फिर एक लड़की को जनम दिया। फिर लड़की को देख कर पंडित जी का चेहरा उतर गया। उनकी jyotish vidhya फ़ैल हो गई। उन्होंने लड़की को देखा, एकदम गुडिया की तरह सुंदर। लेकिन पंडित जी ने को अपनाने से मन कर दिया.नैंसी ने देखा पंडित जी लड़की को किसी भी कीमत पर अपनाने को तैयार नही है। तो उसने डॉक्टर से कहा , यदि पंडित जी को कोई आपत्ति न हो तो मैं लड़की को गोद लेना चाहती हूँ। यदि पंडित जी को krishchian परिवार से कोई आपत्ति न हो तो। पंडित जी ने कहा की मुझे इस लड़की से कोई मतलब नही है। किसी के पास भी रहे.बस किसी को ये पता न चल पाए की ये मेरी संतान है। और इस तरह नैंसी गुडिया को अपने घर ले आई। उस बच्ची के घर में जैसे खुशिया ही खुशिया आ गई। नैंसी ने बच्ची का नाम रखा "खुशी" । नैंसी के पति को बिज़नस में बहुत मुनाफा हुआ। इस तरह खुशी अपने नाम की तरह ही उनके परिवार में खुशिया ले कर आई। और नैंसी का पूरा घर खिशी से जगमगा उठा।
और पंडित जी लड़के की चाह में , घर में आई लक्ष्मी को भी ठुकरा दिया। और अपना नाम भी न दे सके।
"कभी- कभी"
ना जाने क्यों, मचल जाता है
दिल तेरे लिए कभी-कभी।
ये जानता है कि तू नही मेरा
फिर भी ना जाने क्यों
संजोता है ख्याब ये तेरे लिए
कभी-कभी।
ये जानता है कि तू नही आएगा कभी।
फिर भी तेरी राह में,
नज़रे बिछाता है ये कभी-कभी।
मैं समझता हूँ इस दिल को लाख,
फिर भी बे-लगाम हो जाता है ये कभी-कभी।
२२/०८/2008
दिल तेरे लिए कभी-कभी।
ये जानता है कि तू नही मेरा
फिर भी ना जाने क्यों
संजोता है ख्याब ये तेरे लिए
कभी-कभी।
ये जानता है कि तू नही आएगा कभी।
फिर भी तेरी राह में,
नज़रे बिछाता है ये कभी-कभी।
मैं समझता हूँ इस दिल को लाख,
फिर भी बे-लगाम हो जाता है ये कभी-कभी।
२२/०८/2008
Friday, September 12, 2008
"प्यार क्या है?"
प्यार,
एक ढाई अक्शर का नाम!
क्या है ये प्यार??
ज़माना कहता है ,
प्यार नाम है रुस्वाई का,
प्यार नाम है जुदाई का।
प्यार नाम है तन्हाई का,
प्यार नाम है अधूरी मंजील का।
प्यार देता है सिर्फ़ दुःख और दर्द।
पर ,
पर, ये दील कहता है,
जीसने पा लीया ये प्यार,
उसे सब कुछ मील जाता है।
और ये ज़माना ,
जो करता है प्यार की बुराई।
एक दीन, आहिस्ता से
ख़ुद ही प्यार का हो जाता है।
तो ए मेरे दोस्त, ज़रा प्यार से प्यार
कर के तो देखो।
सारा ज़माना ही प्यार से लबरेज हो जाएगा।
०८/०८/२००८
एक ढाई अक्शर का नाम!
क्या है ये प्यार??
ज़माना कहता है ,
प्यार नाम है रुस्वाई का,
प्यार नाम है जुदाई का।
प्यार नाम है तन्हाई का,
प्यार नाम है अधूरी मंजील का।
प्यार देता है सिर्फ़ दुःख और दर्द।
पर ,
पर, ये दील कहता है,
जीसने पा लीया ये प्यार,
उसे सब कुछ मील जाता है।
और ये ज़माना ,
जो करता है प्यार की बुराई।
एक दीन, आहिस्ता से
ख़ुद ही प्यार का हो जाता है।
तो ए मेरे दोस्त, ज़रा प्यार से प्यार
कर के तो देखो।
सारा ज़माना ही प्यार से लबरेज हो जाएगा।
०८/०८/२००८
Monday, June 30, 2008
तलाश मंजिल की...
बढ चला हूँ फिर मंजिल की
तलाश में,
मंजिल, जिसे मैंने समझा था कि पा लिया है,
अब
पर भोर की दस्तक के साथ जब खुली आख,
और स्वप्न टुटा।
तो जाना कि यह मंजिल नही,
उसकी राह का एक पड़ाव है।
सोचा था कि ये पड़ाव ही मेरी मंजिल है और साथी,
हमराही।
और अब भोर के उजियाले में , खुली आँख के साथ ,
फिर बढ चला हूँ ,
मंजिल की तलाश में॥
तलाश में,
मंजिल, जिसे मैंने समझा था कि पा लिया है,
अब
पर भोर की दस्तक के साथ जब खुली आख,
और स्वप्न टुटा।
तो जाना कि यह मंजिल नही,
उसकी राह का एक पड़ाव है।
सोचा था कि ये पड़ाव ही मेरी मंजिल है और साथी,
हमराही।
और अब भोर के उजियाले में , खुली आँख के साथ ,
फिर बढ चला हूँ ,
मंजिल की तलाश में॥
Wednesday, May 28, 2008
राजा और उसकी तन्हाई
बहुत पुरानी बात है , एक राजा tha॥बहुत धनवान,bhut gyani,bada hi bhakta tha।Bahgwan ko bhut maanta tha..Uska ghair-dawar humesha uske reshtedaron aur sabha gano se bhara rahta tha.Sara din wo sabhi logo se ghira rahta tha..Dher sari sampatti aur dher sare logo ke bich hote huye bhi raja jab akela hota to wo apne aap ko बहुत tanha mahsus karta.Raja jab bhi akela hota aur tanha mahsus karta use ek chota sa tara uske aas-paas dikhai deta.Wo kabhi nahi samja pata ki ye kaun hai..Per dheere-2 raja apne is akelepan se bhi ghabrane laga.Usne apne aas paas aur bhi bheed jama kar li..Per raja ki tanhai phir bhi door na hui..Jab wo shayn kaksh me jata to uski aakhon se neend koso dur rahti.Per us samay use wo tara phir bhi uske paas najar aata..Ek din raja apni तन्हाई से बहुत परेशान था ।Usne dekha tara uske ekdam paas hai॥To wo jor se chillaya--kaun ho tum? jab bhi main akela rahta hun, Tum Humesha mere paas nazar aate ho, tum tabhi hi kyon nazar aate ho..Tara achanak ek angle ke roop me badal gaya.. उसने कहा , राजा main to humesha tumhare paas hota hun. Tum hi muje nahi dekh pate..Din bhar tum bheed se ghire rahte ho..Isliye tum chaah kar bhi muje nahi dekh pate.Per मैं to sada tumhare sath hun.Angle raja ke poochta hai -rajan kuch maangna chahte ho? Maang lo.Per raja kahta hai ki muje kis chiz ki kami hai.Mere paas sab kuch hai.Dhan sampatti,rashte-naatedar,Mitra.Muje kisi chiz ki jarurat nahi..Angle kahta hai- ek baar phir soch lo.Raja kahta hai muje sochne ki jarurat hi nahi.Farishta muskurata hai aur gayab ho jata hai.Dheere-2 time beetata jata है ..राजा के सभी mitra, rishtedaar,सभा-गंद , राजा को धीरे -2 अपने - अपने tarike se khokhla karte jate hai.Ek दिन वो आता है , जब राजा के पास कुछ नही बचता ।उसकी साडी धन - सम्पत्ति और रिश्ते -नातेदार और उसके मित्र उड़ा देते है ..राजा कंगाल हो जाता है तो सभी उस से कन्नी काटने लगते है ..राजा को समझ आता है की लोग उस से नही बल्कि उसकी दौलत से मोह करते थे और वो ये समझता रहा ही लोग उस से प्यार करते है। राजा अपने राज्य में रहने लायक नही रहता। वो अपने राज्य से बहुत दूर निकल jata hai..टैब wo apne us nanhe farishte ko bhut yaad karta hai..कई बार उसे पुकारता है .पर वो kahi nazar nahi aata.राजा चलते-2 थक jata hai aur ek ped ke niche so jata hai..Use lagta hai ki kahi se sheetal hawa ka jhoka aa raha hai,ek bheeni si khushboo,koi uska matha sahla raha hai.Per raja so जाता hai..aise kai din beet-te jate hai..Raja kai baar farishte ko aawaz deta hai per wo kabhi nazar nahi aata..Raja phir mahnat kar ke dhan samptti jodna shuru karta hai..Dheere-2 uske paas kuch daulat aa jati है ..पर राजा उदास रहता है । अचानक उसे एक तारा टिमटिमाता दिखाई देता है ..राजा जोर से हसता है और कहता है, आओ फ़रिश्ते आओ ..आज मेरे paas थोडी सम्पत्ति ho gai to tum bhi aa gaye , warna kal jab main bilkul tanha tha to tum bhi auro ki tarah हो gaye the..Farishta muskuraya,bola-raja main to humehsa tumhare पास tha। Tum bhool gaye, जब tum thak kar ped ke saye me sote to तुम्हारे बालो को कौन सहलाता था .तुम्हारे पैर के जख्मो को कौन साफ करता था . राजन , साथ तो मैं हमेशा से हूँ तुम्हारे , बस तुम ही नही देख पाए ...
CANN' T
ये कहानी है एक अध्यापिका की,जो की अपने क्लास की क्लास टीचर भी थी.वो बहुत परेशान रहती थी,क्योकि बच्चे उसकी कोई बात नहीं मानते थे.दुसरे सभी अध्यापक और अध्यापिकाओं की बात वो सुनते थे और उनका कहना भी मानते थे.वो बहुत परेशान थी.क्या किया जाये कुछ समझ नहीं आ रहा था.तभी उसे एक ख्याल आया.वो अगले दिन स्कूल गई.उसने बच्चो से कहा , आज हम लोग पढाई नहीं करेगे.अपनी बुक्स एक तरफ रख दो.बच्चे बड़े खुश , चलो आज पढना नहीं पड़ेगा.उन्होने ख़ुशी ख़ुशी बुक्स अलग रख दिए.फिर टीचर ने कहा हम लोग एक गेम खेलेगे.बच्चे और भी खुश,पढना नहीं है और अब तो मैडम गेम खिला रही है.टीचर ने कहा सभी लोग एक पेन और पेपर लो.और सभी लोग उस पर वो चीजे लिखो जो आप नहीं कर सकते.बच्चों ने लिखना शुरू किया.अब ये कोई परीछा तो थी नहीं की कोई नक़ल कर लेता.सभी अपने अपने ना करने वाली चीजों के बारे में लिखने लगे.टीचर भी एक पेन और पेपर ले कर बैठ गई लिखने की वो क्या नहीं कर सकती.तभी क्लास के सामने से प्रधान-अध्यापक गुजरे.उन्होने देखा की क्लास में एकदम शांति है.किसी का ध्यान भी नहीं गया की प्रधान-अध्यापक आ रहे है.उन्होने एक ,दो,करते करते कई चक्कर लगाये.किसी का ध्यान नहीं गया. सब अपने- अपने cann't लिखने में लगे थे.टीचर भी. आखिर थक कर वो चले गए.थोडी देर बाद टीचर ने बच्चो से कहा सभी ने लिख लिया? सभी ने कहा हाँ टीचर..टीचर ने एक बड़ा सा कार्टून बॉक्स उठाया और कहा की सब अपने cann't इसमें डाल दो .सभी में वैसा ही किया.अब टीचर ने कहा चलो स्कूल के मैदान में सभी मिल कर एक गढ्ढा खोदो.सभी मने मिल कर गढ्ढा खोदा.टीचर ने कार्टून बॉक्स की सारी cann't वाली पर्चियां उस गढ्ढे में पलट दी.और कहा सभी मिल कर उस पर एक एक मुठ्ठी मिटटी डालो और cann't की आत्मा की शांति के लिए दुआ करो. सभी ने दो मिनिट मौन रह कर दुआ की.फिर टीचर ने कहा अब क्लास में चलो. अगले दिन टीचर फिर क्लास में आई. और पढ़ना शुरू किया.एक छात्र से सवाल पुछा.छात्र उठा और बोला ,पर मैडम मैं तो ये नहीं कर सकता, मुझे ये नहीं आता है.अगले ही पल उसे याद आया की कैन'नॉट को तो वो कल ही दफना चूका है.....और खामोश हो गया.क्योकि उसने कल ही आपने cann't को दफनाया था..अब उसके पास ऐसी कोई चीज़ नहीं थी जो वो नहीं कर सकता था. So, moral of the story is this, there is nothing that a man cann't do..So just remove cann't from life.
Monday, May 26, 2008
एक गीत..
मेरी जान है तू, ए जाने- जां
जान बिना मैं कैसे जीयु
इस दिल को है अरमान तेरा -२
अरमान बिना मैं कैसे जीयु -३
मेरी जान है तू, ए जाने -जां।
ये जीवन है अहसान तेरा-२
अहसान बिना मैं kaise jiyu -३
तेरा चेहरा देख कर दिन निकले -२
तेरे पलको में शामएं ढलती है।
इस दिल में धड़कन तुझसे है-२
तेरे नाम से सासें चलती है-३
मेरी जान है तू ए जाने जान।
जान बिना मैं कैसे जीयु
इस दिल को है अरमान तेरा -२
अरमान बिना मैं कैसे जीयु -३
मेरी जान है तू, ए जाने -जां।
ये जीवन है अहसान तेरा-२
अहसान बिना मैं kaise jiyu -३
तेरा चेहरा देख कर दिन निकले -२
तेरे पलको में शामएं ढलती है।
इस दिल में धड़कन तुझसे है-२
तेरे नाम से सासें चलती है-३
मेरी जान है तू ए जाने जान।
Views...
"When there are multiple paths between source and destination, a route must be chosen. "
" खूबी इतनी तो नही की दिल में घर कर जायेगे,
पर भुलाना भी आसान ना होगा, ऐसा कुछ कर जायेगे। "
" खूबी इतनी तो नही की दिल में घर कर जायेगे,
पर भुलाना भी आसान ना होगा, ऐसा कुछ कर जायेगे। "
दुआ..
"जिंदगी एक भोर की मानिंद देती है दस्तक,
कौन सा पल कैसे गुजरे,कौन जान पाया अब तलक।
सूरज से उगते सुख के साथ,पंछी से चहकते रहिये,
गहराती अँधेरी रात में चाँद से चमकते रहिये, यही दुआ है मेरी। "
१ जन-२००२
कौन सा पल कैसे गुजरे,कौन जान पाया अब तलक।
सूरज से उगते सुख के साथ,पंछी से चहकते रहिये,
गहराती अँधेरी रात में चाँद से चमकते रहिये, यही दुआ है मेरी। "
१ जन-२००२
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