Saturday, November 5, 2022

तेरा दीदार

 बरसो बीत गये तेरी एक झलक पाने को,

तरस गए ये नयन तेरे एक दीदार को। 

कहाँ गुम हो गया तू ज़माने की इस भीड़ में ,

बरसों बीत गए तुझे तलाशनें में। 

अब तो आलम ये है कि चाँद में भी ढूंढा करता हूँ अस्क  तेरा ,

और शिकायत करता हूँ सूरज के आने से। 

ना जाने कब पूरी होगी ये तलाश , तेरे दीदार की ,

कि अब साँस भी छोड़ने लगी है साथ। 

अंतिम घड़ी नज़दीक खड़ी है ,

लड़खड़ाती साँसों को आज भी है तेरा इंतज़ार। 

खड़ा हूँ आज भी उस राह पर, जहाँ

तू मुझे छोड़ चल पड़ा था अकेले। 


 

 

कभी लगता है शब्दों की चादर फैला दू ,

कभी लगता है ख़ामोशी को बिखेर दू। 

गोते खाता इस भॅवर में ये मन ,

किनारे को ढूढ़ता है। 

क्या कभी कोई किनारा पा पाता है ?

या फिर इन लहरों में कभी डूबता, कभी उबरता 

इस भव सागर से तर जाता है। 

मेरे कान्हा अब तो आओ ,



मुझे इस भॅवर से बचाओ। 

बस डूब जाऊ तेरी भक्ति के रस में ,

कुछ और नहीं है चाह। 

फिर ये तेरी मर्जी चाहे पार लगा दे ,

या युहीं मझधार में छोड़ दे।