Monday, October 6, 2008

"कभी- कभी"

ना जाने क्यों, मचल जाता है
दिल तेरे लिए कभी-कभी।
ये जानता है कि तू नही मेरा
फिर भी ना जाने क्यों
संजोता है ख्याब ये तेरे लिए
कभी-कभी।
ये जानता है कि तू नही आएगा कभी।
फिर भी तेरी राह में,
नज़रे बिछाता है ये कभी-कभी।
मैं समझता हूँ इस दिल को लाख,
फिर भी बे-लगाम हो जाता है ये कभी-कभी।
२२/०८/2008

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर!!

Mayurika said...

Thanks Paramjeet Ji

Anonymous said...

मैं समझता हूँ इस दिल को लाख,
फिर भी बे-लगाम हो जाता है ये कभी-कभी।

apne dil ko samjhana bada hi mushkil hota hai, ya yu kahe ki dil ko samjhane ke liye apne dil ke hi tukde karne padte hai