पानी जिसका ना कोई रूप है और ना ही कोई आकार
जन्मलिया, कुछ बंधा रिश्तों से , कुछ उन्मुक्त बहता रहा।
बहता-बहता एक दिन जा टकराया प्यार से ,
प्यार की वादियाँ, चारों तरफ़ हरियाली, महकते हुए फूल, खुशिया ही खुशियाँ
मैं बहता रहा मस्ती से छलकते हुए।
फिर एक दिन प्यार बोला-
तुम्हे जाना होगा।
और बाँध दिया एक बाँध मेरे और उसके बीच।
मैं, मैं तो सरे रास्ते छोड़ बह चला था,
प्यार की वादियों में।
बिना राह, मैं बाँध के इस ओर बंधने लगा।
रिश्तों ने फिर आवाज़ दी॥
पर लौटू कैसे?
मैं तो बंध चुका हूँ।
रिश्तो ने नहर बने...
फिर मुझे वापस ले आए, उस दुनिया में , जो मेरी थी।
jaha मैंने जन्म लिया था॥
२२/१०/2008