बरसो बीत गये तेरी एक झलक पाने को,
तरस गए ये नयन तेरे एक दीदार को।
कहाँ गुम हो गया तू ज़माने की इस भीड़ में ,
बरसों बीत गए तुझे तलाशनें में।
अब तो आलम ये है कि चाँद में भी ढूंढा करता हूँ अस्क तेरा ,
और शिकायत करता हूँ सूरज के आने से।
ना जाने कब पूरी होगी ये तलाश , तेरे दीदार की ,
कि अब साँस भी छोड़ने लगी है साथ।
अंतिम घड़ी नज़दीक खड़ी है ,
लड़खड़ाती साँसों को आज भी है तेरा इंतज़ार।
खड़ा हूँ आज भी उस राह पर, जहाँ
तू मुझे छोड़ चल पड़ा था अकेले।
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